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Monday 20 February 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #153
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②ⓞ⑧_*
     ऐ ईमान वालो इस्लाम में पूरे दाख़िल हो   (23) और शैतान के क़दमों पर न चलो (24) बेशक वह तुम्हारा खुला दुश्मन है.
 
*तफ़सीर*
     (23) किताब वालों में से अब्दुल्लाह बिन सलाम और उनके असहाब यानी साथी हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर ईमान लाने के बाद शरीअते मूसवी के कुछ अहकाम पर क़ायम रहे, सनीचर का आदर करते, उस दिन शिकार से अलग रहना अनिवार्य जानते, और ऊंट के दूध और गोश्त से परहेज़ करते, और यह ख़याल करते कि ये चीज़ें इस्लाम में तो वैध यानी जायज़ हैं, इनका करना ज़रूरी नहीं, और तौरात में इससे परहेज़ अनिवार्य बताया गया है, तो उनके छोड़ने में इस्लाम की मुख़ालिफ़त भी नहीं है. और हज़रत मूसा की शरीअत पर अमल भी होता है. उसपर यह आयत उतरी और इरशाद फ़रमाया गया कि इस्लाम के आदेश का पूरा पालन करो यानी तौरात के आदेश स्थगित हो गए, अब उनकी पाबन्दी न करो. (ख़ाजिन)
     (24) उसके उकसाने और बहकाने में न आओ.
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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