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Wednesday 1 February 2017

*सिरते मुस्तफाﷺ*
*_दसवा बाब_* #22
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*​जंगे खन्दक*​ #07
*_अम्र बिन अब्दे वूद मारा गया_*
     सबसे आगे अम्र बिन अब्दे वूद था ये अगरचे 90 साल का खुर्राट बुढ्ढा था मगर एक हज़ार सुवरो के बराबर बहादुर माना जाता था, जंगे बदर ने ज़ख़्मी हो कर भाग निकला था और इसने ये क़सम खा रखी थी की जब तक मुसलमानो से बदला न ले लूंगा बालो में तेल न डालूँगा। ये आगे बढ़ा और चिल्ला चिल्ला कर मुकाबले की दावत देने लगा 3 मर्तबा इसने कहा की कौन है जो मेरे मुकाबले को आता है ? तीनो मर्तबा हज़रते अली शेरे खुदाكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم  ने उठ कर जवाब दिया की में।
     हुज़ूरﷺ ने रोका की ऐ अली ! ये अम्र बिन अब्दे वूद है। हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने अर्ज़ किया जी हा में जानता हु की ये अम्र बिन अब्दे वूद है लेकिन में इससे लड़ूंगा, ये सुन कर हुज़ूरﷺ ने अपनी ख़ास तलवार ज़ुल्फ़िकार अपने दस्ते मुबारक से हैदरे कर्रार के मुक़द्दस हाथ में दे दी और अपने मुबारक हाथो से उन के सरे अनवर पर इमामा बांधा और ये दुआ फ़रमाई की या अल्लाह ! तू अली की मदद फरमा।
     हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم मुजाहिदाना शान से उस के सामने खड़े हो गए और दोनों में इस तरह मुकालमा शुरू हुवा :
हज़रते अली : ऐ अम्र ! तू मुसलमान हो जा !
अम्र : ये मुझसे कभी हरगिज़ हरगिज़ नही हो सकता !
हज़रते अली : लड़ाई से वापस चला जा !
अम्र : ये मंज़ूर नही !
हज़रते अली : तो फिर मुझ से जंग कर !
अम्र : है कर कहा की में कभी ये सोच भी नही सकता था की दुन्या में कोई मुझ को जंग की दावत देगा।
हज़रते अली : लेकिन में तुझसे लड़ना चाहता हु।
अम्र : आखिर तुम्हारा नाम क्या है ?
हज़रते अली : अली बिन अबी तालिब।
अम्र : ऐ भतीजे ! तुम अभी बहुत ही कम उम्र हो में तुम्हारा खून बहाना पसन्द नही करता।
हज़रते अली : लेकिन में तुम्हारा खून बहाने को बेहद पसन्द करता हु।
     खून खोला देने वाले गर्मा गर्म जुमले सुन कर अम्र मारे गुस्से के आपे से बाहर हो गया, हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم पैदल थे और ये सुवार था इस पर जो गैरत सुवार हुई तो घोड़े से उतर पड़ा और अपनी तलवार से घोड़े के पाउ काट डाले और नंगी तलवार ले कर आगे बढ़ा और हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم पर तलवार का भरपूर वार किया, हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने तलवार के उस वार को अपनी ढाल पर रोका, ये वार इतना सख्त था की तलवार ढाल और इमामे को काटती हुई पेशानी पर लगी, गो बहुत गहरा ज़ख्म नही लगा मगर फिर भी ज़िन्दगी भर ये तुगार आप की पेशानी पर यादगार बन कर रह गया।
     हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने तड़प कर ललकारा की ऐ अम्र ! सँभल जा अब मेरी बारी है ये कह कर आप ने ज़ुल्फ़िकार का ऐसा जचा तुला हाथ मारा की तलवार दुश्मन के शाने को काटती हुई कमर से पार हो गई और वो तिलमिला कर ज़मीन पर गिरा और दम जदन में मर कर फिन्नार हो गया, मैदाने कारज़ार ज़बाने हाल से पुकार उठा
          *शाहे मर्दा, शेरे यज़दा क़ुव्वते परवर्दगार*
     हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने उस को क़त्ल किया और मुह फेर कर चल दिये, हज़रते उमरرضي الله تعالي عنه ने कहा की ऐ अली ! आप ने अम्र की ज़िरह क्यू नही उतार ली ? सारे अरब में इससे अच्छी कोई ज़िरह नही है, आपكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने फ़रमाया की ऐ उमर ! ज़ुल्फ़िकार की मार से वो इस तरह बे क़रार हो कर ज़मीन पर गिरा की उस की शर्मगाह खुल गई इस लिये हया की वजह से में ने मुह फेर लिया।
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 335*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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