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Tuesday 14 February 2017

*नेअमतों के ज़रीये इब्तेला (आज़माइश)* #2
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

           अगर वो माल, लौंडियों, गुलामों के साथ बासरवत होते है और दुश्मनों से मामून व मेहफ़ूज़ रेहते है। और नेअमतोंकी हालतमें इस तरह मगन है के मसाइल-व-आलमको मेहसूस ही नहीं करते या हालते बला में इस तरह मायूस है के वजूदे नेअमतको मेहसूस नहीं करते तो ये सूरतें ख़ुदावन्द करीमसे बेखबरी और दुनिया की महोब्बत की दलील है।
          अगर वो ये जानते के अल्लाह तआला जिस चिज़का इरादा करता है, उसे कर देता है और एक हालसे दूसरे हालमें तबदील करना या एक जगा से दूसरी जगा ले जाना, तवंगरी और नकबत, बुलन्दी और पस्ती, इज़्ज़त-व-ज़िल्लत, ज़िन्दगी और मौत और तकदीम-व-ताखीर सब कुछ उसीके हाथमें है, तो मौजूदा नेअमतों पर कभी इत्मेनान और तकब्बुर न करते और मसाइब और बलाओं की हालत में कभी खुशहाली और आरामसे मायूस न होते।
बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 104
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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