*ज़ू रेहम महरम और जूं रेहम से मुराद?* #02
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*दूसरी हिदायत* : अहले क़राबत दो किस्म के है एक वो जिन से निकाह हराम है, इन्हें ज़ी रेहम महरम (ऐसा क़रीबी रिश्तेदकर की अगर इनमे से जिस किसी को भी मर्द और दूसरे को औरत फ़र्ज़ किया जाए तो निकाह हमेशा के लिये हराम हो जेसे बाप, माँ, बेटा बेटी, भाई, बहन, चचा, फूफी, ममुं, खाला, भांजा, भांजी, वगैरा) कहते है, जेसे चचा, फूफी ममुं, खाला वगैरा। ज़रूरत के वक़्त इनकी खिदमत करना फ़र्ज़ है न करने वाला गुनाहगार होगा।
दूसरे वो जिनसे निकाह हलाल जेसे खाला, मामूँ, चचा की औलाद इनके साथ एहसान व सुलूक करना सुन्नते मुअककदा है और बहुत सवाब लेकिन हर क़राबत दार बल्कि सारे मुसलमानो से अच्छा अख़्लाक़ के साथ पेश आना ज़रूरी और इन को इज़ा पहुंचानी हराम।
*तीसरी हिदायत* : सुसराली दूर के रिश्तेदार ज़ी रेहम नहीं, हाँ इन में से बाज़ महरम है जेसे सास और दूध की माँ, बाज़ महरम भी नहीं, इनके भी हुक़ूक़ है यहाँ तक की पड़ोसी के भी हक़ है मगर ये लोग इस आयत में दाखिल नहीं क्यूं की यहाँ रेहमी और रिश्ते वाले मुराद है।
*तफ़सीरे नईमी* 1/447
*ऐहतिरामे मुस्लिम* 10
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*DEEN-E-NABI ﷺ*
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Monday 26 March 2018
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