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Monday 18 June 2018

*_नमाज़ की अहमिय्यत अहादिष की रौशनी में_* #04


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रत अबू हुरैरा رضي الله غنه फ़रमाते है : आदमी अल्लाह के सबसे ज़्यादा क़रीब उस वक़्त होता है जब वो सज्दे में होता है।

*✍🏼सहीह मुस्लिम*

     ज़ाहिर है कि सज्दा नमाज़ का हिस्सा है तो जो शख्स जितनी नमाज़े पढ़ेगा उसके सज्दे उतने ज़्यादा होंगे और जब सज्दे ज़्यादा होंगे तो अल्लाह की बारगाह में उसकी क़दर भी ज़्यादा होगी।


     फरमाने मुस्तफा ﷺ : जब तुम्हारे बच्चे सात बरस के हो तो उन्हें नमाज़ का हुक्म दो और जब वो दस बरस के हो जाए और नमाज़ न पढ़े तो उन्हें मार कर नमाज़ पढाओ।

*✍🏼अबू दाऊद*

     हुज़ूर ﷺ के इर्शाद में हिकमत ये है कि सात बरस की उम्र होने पर बच्चों में शुउर बेदार होने लगता है यानी शुउर बेदार होते ही बच्चों को इबादत की जानिब तवज्जो दिलाई जाए फिर भी दस बरस की उम्र तक अगर नमाज़ के आदी न बन सके तो तो उन्हें मारने का हुक्म इसलिये दिया गया क्योंकि इस उम्र में जो चीज़ अपनाई जाती है वो फितरत में बैठ जाती है यानी नमाज़ को बच्चों की फितरत में शामिल कर दिया जाए।

*✍🏼नमाज़ की अहमिय्यत* 13

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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