*सोहबत किस की अपनाई जाए ?* #02
بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
الصــلوة والسلام عليك يارسول الله ﷺ
*2. अच्छे अख़लाक़ का मालिक हो*
जिस की सोहबत अपनाई जाए उस के अख़लाक़ भी अच्छे होना ज़रूरी है क्यूंकि बहुत से अक्लमन्द अश्या की हकीकतों से तो वाकिफ होते है लेकिन जब उन पर गुस्सा, ख्वाहिश, बुख्ल या बुज़दिली गालिब आ जाए तो वोह अपने नफ़्स की पैरवी करते है और जो कुछ उन्हें मा'लूम होता है उस की मुखालफत कर गुज़रते है, क्यूंकि वोह अपनी (अंदरूनी) सिफ़ात को करने और अच्छे अख़लाक़ अपनाने से आजिज़ होते है, लिहाज़ा ऐसे बद अख़लाक़ शख्स की सोहबत इख्तियार करने में कोई भलाई नही ।
*3. फ़ासिक़ न हो*
वोह फ़ासिक़ जो अपने फिस्क (या'नि गुनाहों) से बाज़ न आए, उस की सोहबत इख़्तियार करने का कोई फाइदा नही क्यूंकि जो अल्लाह तआला से डरता है वोह कबीरा गुनाहों पर इसरार नही करता और जिसे अल्लाह तआला का ख़ौफ़ नहीं, न (तो) उस के फसाद से बचना मुमकिन है न (ही) उस की बात का कोई भरोसा बल्कि वोह अपनी गरज़ के मुताबिक कलाम करता है ।
(चुनान्चे, पारह 15 सुरतुल कहफ़, आयत नम्बर 28 में) अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है :
*तर्जमए कंजूल ईमान :* और उसका कहा न मानो जिस का दिल हम ने अपनी याद से गाफिल कर दिया और वोह अपनी ख्वाहिश के पीछे चला ।
(इसी तरह) एक और मकाम पर (पारह 27 सुरतुन्नजम, आयत नम्बर 29 में) इरशाद फरमाता है।
*तर्जमए कंजूल ईमान :* तो तुम उस से मुंह फेर लो जो हमारी याद से फिरा और उस ने न चाही मगर दुन्या की ज़िन्दगी ।
*इन आयते मुबारका का मफ़हूम येह है कि फासिको से दूर रहो ।*
फिस्क और फासिको का मुशाहदा करने और इन के साथ रहने से दिल गुनाह की तरफ माइल होता है, इस कि नफरत खत्म हो जाती है। चुनान्चे, हज़रते सय्यिदुना सईद बिन मुसय्यब رحمة الله تعالى عليه फरमाते है : "ज़ालिमो की तरफ मत देखो कहि तुम्हारे नेक अ'माल बरबाद न हो जाए, उन की हम नाशिनी में सलामती तो उन से तअल्लुक खत्म कर देने में है ।"
बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍अच्छे माहोल की बरकतें* 15-16
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Monday 12 March 2018
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