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Thursday 15 March 2018

*उलमा की सोहबत दिल के लिये कितनी ज़रूरी है*
بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ
     हज़रते सय्यिदुना लुकमान हकीम عليه رحمة الله الكريم ने अपने बेटे से फ़रमाया : ए बेटे ! उलमा की मजलिस को इख्तियार करो और अपने ज़ानु इन्ही के सामने बिछाए रखो क्यूंकि दिल हिक्मत से ज़िन्दगी पाते है जैसे मुर्दा ज़मीन बारिश के कतरो से ज़िन्दगी पाती है।
*✍(احياء العلوم، ٦١٧/٢ تا ٦٢٦ ماتقطاً)*
     मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! इमाम ग़ज़ाली عليه رحمة الله الوالى के इस बयान से जहां किसी की सोहबत इख़्तियार करने की शराइत मा'लूम हुई, वही आखिर में उलमाए किराम की सोहबत इख्तियार करने की तरग़ीब भी मिली ।
     वाकेई उलमाए दिन का मकामो मर्तबा आम लोगो से बहुत बुलन्द होता है और उन की सोहबत से दिनों दुन्या की ढेरों भलाइयां हासिल होती है। मगर अफसोस ! आज कल मुआशरे में कुछ ऐसे बद नसीब और महरूम लोग भी पाए जाते है जो उम्मत के इन मोहसिनीन और खैर ख्वाह हज़रात को अपनी तनक़ीद का निशाना बना कर उन पर बेजा ए'तिराज़ और नाहक ता'न व तशनिअ करते नज़र आते है। याद रहे की उलमाए किराम दिने इस्लाम के लिये सुतून की हैसिय्यत रखते है। आइये ! उलमा से मुतअल्लिक़ कुरआनो हदीस की रोशनी में कुछ मदनी फूल सुनते है ताकि हमारे दिल मे उलमा की महब्बत व चाहत और केद्रों मन्ज़िलत मज़ीद बढ़ जाए और जो लोग उलमा के मकामो मर्तबे से नावाकिफ है, उन के दिल में भी उलमाए किराम رحمهم الله اسلام की अहमिय्यत उजागर हो और वोह भी उन की कद्र करने में कामयाब हो जाए क्यूंकि उन की केद्रों मन्ज़िलत को पहचानते हुवे उन की सोहबत में बैठने, उन का अदबो एहतिराम करने, उन पर ए'तिराज़ करने से बचने और दिनों दुन्या के तमाम मुआमलात में उन से रहनुमाई हासिल करने में दोनों जहां की भलाइयां है ।

*✍अच्छे माहोल की बरकतें* 18-19
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*​अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...​*
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