*अपनी मौत को याद कीजिये*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
ज़रा तसव्वुर की निगाह से देखिये के मेरी मौत का वक़्त आन पोहचा है, मुझ पर गशी तारी हो चुकी है, लोग बे बसी के आलम में मुझे मौत के मुह में जाता हुवा देख रहे है मगर कुछ् कर नही सकते, नज़ा की सख्तिया भी शुरू हो गई मगर में अपनी तकलीफ किसी को बता नहीं सकता क्यू के हर वक़्त चहकने वाली ज़बान अब खामोश हो चुकी है, सख्त प्यास महसूस हो रही है मगर किसी से दो घूंट पानी नही मांग सकता, इसी दौरान कोई मेरे सामने कलिमए पाक पढ़ने लगा, फिर रफ्ता रफ्ता सामने के मनाज़िर धुंदले होने लगे, गले से खर खराहत की आवाज़े आना शुरू हो गई, और बिल आखिर रूह ने जिस्म का साथ छोड़ दिया।
अज़ीज़ों अक़ारिब पर गिर्या तारी हो गया। अहलो अयाल की आँखे सिद्दते गम से नम है। किसी ने आगे बढ़ कर मेरी आँखे बंद कर दी, मेरी मौत के ऐलानात होने लगे, कुछ लोग मेरे दफ़्न के इन्तिज़ाम में लग गए। गुस्ल व कफनाया गया। मेरे चाहने वालो ने आखरी मर्तबा मुझे देखा के ये चेहरा अब दुन्या में दोबारा हमे दिखाई न देगा।
फिर मेरे नाज़ उठाने वालो ने मेरा जनाज़ा अपने कंधो पर उठा लिया और क़ब्रस्तान की और चलना शुरू हो गए। मेरी नमाज़े जनाज़ा अदा की गई और मेरी लाश को चारपाई से उठा कर उस क़ब्र में मुन्तकिल कर दिया जिस के बारे में हदिष में आया के *जन्नत का एक बाग़ है....या दोज़ख का गढ़ा !*
क़ब्र पर मिट्टी डाल कर जब मेरे साथ आने वाले लौट कर चले तो मेने उनके क़दमो की आवाज़ सुनी, उनके जाने के बाद क़ब्र मुझ से हम कलाम हुई और कहने लगी : *ऐ आदमी ! क्या तूने मेरे हालात न सुने थे ? क्या मेरी तंगी, बदबू, होलनाकिया और कीड़ो से तुझे नहीं डराया गया था ? अगर ऐसा था तो फिर तूने क्या तैयारी की ?*
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त, 28*
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*DEEN-E-NABI ﷺ*
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अज़ीज़ों अक़ारिब पर गिर्या तारी हो गया। अहलो अयाल की आँखे सिद्दते गम से नम है। किसी ने आगे बढ़ कर मेरी आँखे बंद कर दी, मेरी मौत के ऐलानात होने लगे, कुछ लोग मेरे दफ़्न के इन्तिज़ाम में लग गए। गुस्ल व कफनाया गया। मेरे चाहने वालो ने आखरी मर्तबा मुझे देखा के ये चेहरा अब दुन्या में दोबारा हमे दिखाई न देगा।
फिर मेरे नाज़ उठाने वालो ने मेरा जनाज़ा अपने कंधो पर उठा लिया और क़ब्रस्तान की और चलना शुरू हो गए। मेरी नमाज़े जनाज़ा अदा की गई और मेरी लाश को चारपाई से उठा कर उस क़ब्र में मुन्तकिल कर दिया जिस के बारे में हदिष में आया के *जन्नत का एक बाग़ है....या दोज़ख का गढ़ा !*
क़ब्र पर मिट्टी डाल कर जब मेरे साथ आने वाले लौट कर चले तो मेने उनके क़दमो की आवाज़ सुनी, उनके जाने के बाद क़ब्र मुझ से हम कलाम हुई और कहने लगी : *ऐ आदमी ! क्या तूने मेरे हालात न सुने थे ? क्या मेरी तंगी, बदबू, होलनाकिया और कीड़ो से तुझे नहीं डराया गया था ? अगर ऐसा था तो फिर तूने क्या तैयारी की ?*
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