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Monday 3 April 2017

*रजब की बहरे* #05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*गुनाहो पर गुनाह...आखिर क्यू ?*
     जरा सोचिये ! ऐसा क्यू है ? हम गुनाहो के दल दल में ग़र्क़ होते चले जा रहे है, लेकिन हमारे कान पे जूं तक नहीं रेंगती ? हम दिन रात गुनाहो में धुत रहते है, लेकिन हमे घबराहट तक नहीं होती।
     आखिर ऐसा क्यू है ? कही ऐसा तो नहीं है कि गुनाह करते करते हम गुनाहो के इतने आदि हो गए है कि हमें गुनाह करने का एहसास तक नहीं रहा। याद रखिये ! बाज़ सालिहिन ने फ़रमाया है : बेशक गुनाह करने से दिल सियाह हो जाता है और दिल की सियाही की अलामत ये होती है कि गुनाहो से घबराहट नहीं होती, इबादत के लिये मौक़ा नहीं मिलता, नसीहत से कोई फायदा नहीं होता (यानि नसीहत व बयान सुन कर दिल पर असर नहीं होता)

     रसूले अकरम ﷺ का फरमान है : जब कोई बन्दा गुनाह कर लेता है, तो उस के क़ल्ब पर एक सियाह नुक़्ता लग जाता है, लेकिन जब वो अल्लाह तआला से मग्फिरत तलब करता है और तौबा कर लेता है तो उस का क़ल्ब साफ़ कर दिया जाता है और अगर वो तौबा के बजाए दो बारां गुनाह कर ले तो ये सियाही मजीद बढ़ जाती है, यहाँ तक कि उस का दिल सियाह हो जाता है।
*✍🏽रजब की बहारे, सफा 6*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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