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Saturday 29 April 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #193
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, रुकूअ-35, आयत ②⑤⑧_*
     ऐ मेहबूब क्या तुमने न देखा था उसे जो इब्राहिम से झगड़ा उसके रब के बारे में इस पर(1) कि अल्लाह ने उसे बादशाही दी(2) जब कि इब्राहीम ने कहा कि मेरा रब वह है कि जिलाता और मारता है (3) बोला मै जिलाता और मारता हूँ (4) इब्राहीम ने फ़रमाया तो अल्लाह सूरज को लाता है पूरब से, तू उसको पश्चिम से ले आ(5) तो होश उड़ गए काफ़िर के और अल्लाह राह नहीं दिखाता ज़ालिमों को.
*तफ़सीर*
     (1) घमण्ड और बड़ाई पर.
     (2) और तमाम ज़मीन की सल्तनत अता फ़रमाई, इस पर उसने शुक्र और फ़रमाँबरदारी के बजाय घमण्ड किया और ख़ुदा होने का दावा करने लगा, उसका नाम नमरूद बिन कनआन था. सब से पहले सर पर ताज रखने वाला यही है. जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने उसको ख़ुदा परस्ती की दावत दी, चाहे आग में डाले जाने से पहले या इसके बाद, तो वह कहने लगा कि तुम्हारा रब कौन है जिसकी तरफ़ तुम हमें बुलाते हो.
     (3) यानी जिस्मों में मौत और ज़िन्दगी पैदा करता है, एक ख़ुदा को न पहचानने वाले के लिये यह बेहतरीन हिदायत थी, और इसमें बताया गया था कि ख़ुद तेरी ज़िन्दगी उसके अस्तित्व की गवाह है कि तू एक बेजान नुत्फ़ा था, उसने उसे इन्सानी सूरत दी और ज़िन्दगी प्रदान की. वह रब है और ज़िन्दगी के बाद फिर ज़िन्दा जिस्मों को मौत देता है. वो परवर्दिगार है, उसकी क़ुदरत की गवाही ख़ुद तेरी अपनी मौत और ज़िन्दगी में मौजूद है. उसके अस्तित्व से बेख़बर रहना अत्यन्त अज्ञानता और सख़्त बद-नसीबी है. यह दलील ऐसी ज़बरदस्त थी कि इसका जवाब नमरूद से न बन पड़ा और इस ख़याल से कि भीड़ के सामने उसको लाजवाब और शर्मिन्दा होना पड़ता है, उसने टेढ़ा तर्क अपनाया.
     (4) नमरूद ने दो व्यक्तियों को बुलाया. उनमें से एक को क़त्ल किया, एक को छोड़ दिया और कहने लगा कि मैं भी जिलाता मारता हुँ, यानी किसी को गिरफ़्तार करके छोड़ देना उसको जिलाना है. यह उसकी अत्यन्त मूर्खता थी, कहाँ क़त्ल करना और छोड़ना और कहाँ मौत और ज़िन्दगी पैदा करना. क़त्ल किये हुए शख़्स को ज़िन्दा करने से आजिज़ रहना और बजाय उसके ज़िन्दा के छोड़ने को जिलाना कहना ही उसकी ज़िल्लत के लिये काफ़ी था. समझ वालों पर इसी से ज़ाहिर हो गया कि जो तर्क हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने क़ायम किया है वह अन्तिम है, और उसका जवाब मुमकिन नहीं. लेकिन चूंकि नमरूद के जवाब में दावे की शान पैदा हो गई तो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने उस पर मुनाज़िरे वाली गिरफ़्त फ़रमाई कि मौत और ज़िन्दगी का पैदा करना तो तेरी ताक़त से बाहर है, ऐ ख़ुदा बनने के झूटे दावेदार, तू इससे सरल काम ही कर दिखा जो एक मुतहर्रिक जिस्म की हरकत का बदलना है.
      (5) यह भी न कर सके तो ख़ुदा होने का दावा किस मुंह से करता है. इस आयत से इल्मे कलाम में मुनाज़िरा करने का सुबूत मिलता है.
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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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