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Friday 28 April 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #192
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, रुकूअ-34, आयत ②⑤⑥_*
कुछ ज़बरदस्ती नहीं (11) दीन में बेशक ख़ूब जुदा हो गई है नेक राह गुमराही से तो जो शैतान को न माने और अल्लाह पर ईमान लाए (12) उसने बड़ी मज़बूत गिरह थामी जिसे कभी खुलना नहीं और अल्लाह सुनता जानता है.
*तफ़सीर*
     (11) अल्लाह की सिफ़ात के बाद “ला इकराहा फ़िद दीन” (कुछ ज़बरदस्ती नहीं दीन में) फ़रमाने में यह राज़ है कि अब समझ वाले के लिये सच्चाई क़ुबूल करने में हिचकिचाहट की कोई वजह बाक़ी न रही.
     (12) इसमें इशारा है कि काफ़िर के लिये पहले अपने कुफ़्र से तौबह और बेज़ारी ज़रूरी है, उसके बाद ईमान लाना सही होता है.

*_सूरतुल बक़रह, रुकूअ-34, आयत ②⑤⑦_*
     अल्लाह वाली है मुसलमानों का उन्हें अंधेरियों से (13) नूर की तरफ़ निकालता है और काफ़िरों के हिमायती शैतान हैं वो उन्हें नूर से अंधेरियों की तरफ़ निकालते हैं यही लोग दोज़ख़ वाले हैं, उन्हें हमेशा उसमें रहना (257)
*तफ़सीर*
     (13) कुफ़्र और गुमराही की रौशनी, ईमान और हिदायत की रौशनी
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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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