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Tuesday 26 July 2016

फुतूह अल ग़ैब

*क़ुरबे इलाही के मरहले*
हिस्सा-02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     अल्लाह तबारक-व-तआला ने अपने बरगुज़ीदा नबी ﷺ  को फरमाया : हमने दुनिया के जो ज़ाहिरी अमवाल-व-अस्बाब कुफ्फार को दे रख्खे हैं, आप उनकी तरफ नज़र भर के न देखिये। क्योंके ये तो उनको फितना व इम्तेहान में मुब्तेला करने के लिये हैं और आपके रबका अता करदा रिज़्क आपके लिये बेहतर और बाकी रेहनेवाला है।
     इस कौले खुदावन्दीमें हुज़ूर पूर नूर ﷺ के पैरवों के लिये हफज़े हाल, सब्रो, शुक्र और अताकरदाह नेअमतों पर राज़ी रेहनेकी तलकीन की गई है। इसका मतलब ये है के खैर, मन्सबे नबुव्वत, इल्म, किनाअत, तवहीद-व-मआरिफत, जेहाद, सब्र, विलायत और फतुह गैबी वगैरह जो चीज़ें दिलके मुतल्लिक हबीबेपाक ﷺ को अता की गई हैं, वो इनकी ज़ात के लिये मखसूस हैं।
     दुनियाके माल और सामाने इशरत से बेहतर और दाएमी हैसियत की हैं और मुकम्मिल खैर का मतलब भी यही है के खुदाकी रज़ा पर राज़ी हो कर अपने हालकी हिफाज़त की जाए और फानी चीज़ोंकी तरफ मुल्तफिन (इल्तेफात करनेवाला) न होना ही नेकीयों और बरकतों की अस्ल हैं।
    दुनिया की तमाम अशयाको (चीज़ोंको) खुदावंद तआला ने बन्दोंकी आज़माइश के लिये पैदा किया है।

बाक़ी कल की पोस्ट में...इन्शा अल्लाह
*फुतूह अल ग़ैब 18*
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