*एअतेराफे तकसीर और इस्तिगफार*
(हिस्सा-4)
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام عليك يارسول الله ﷺ*
ये वाज़ेह है के अल्लाह तबारक व तआला हर शै पर कादिर है। उसको कुदरत से आजिज़ न समजना, तकदीरो तदबीर पर इतहाम (तोहमत लगाना) न तराशना, उसके वादों पर किसी शक-शुबाका इज़हार न करना। ताके हुजूरे अकरम ﷺ के अस्वए हुस्ना (अच्छे नमूने) की तकलीद कर शको। हुज़ूर ﷺ पर आयतें और सूरतें नाज़िल हुइ। इन्हें सफह में लिखा गया और मस्जिदो मेहराबमें पण्हा गया। फिर उन्हें मन्सूख करके दूसरी आयत लाइ गइ। ये हुज़ूर ﷺ शरइ और ज़ाहिरी हालत थी। आपके बातिनी एहवाल और उलूमसे या आप खुद वाकिफ है। या आपका खुदा।
हुजूर ﷺ ने इरशाद फरमाया के जब मेरे दिल को ढांप लिया जाता तो में हर रोज सत्तर (70) मरतबा (एक और रिवायतमें है के सो-100 मरतबा) मगफेरत करता था और वो हालत दुसरी हालतमें तबदील कर दी जाती थी।
बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह
*✍🏽फुतूहल ग़ैब* पेज 15
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*DEEN-E-NABI ﷺ*
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हुजूर ﷺ ने इरशाद फरमाया के जब मेरे दिल को ढांप लिया जाता तो में हर रोज सत्तर (70) मरतबा (एक और रिवायतमें है के सो-100 मरतबा) मगफेरत करता था और वो हालत दुसरी हालतमें तबदील कर दी जाती थी।
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