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Thursday 28 July 2016

फुतूह अल ग़ैब

*क़ुरबे इलाही के मरहले*
हिस्सा-03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     दुनिया की तमाम अशयाको (चीज़ोंको) खुदावंद तआला ने बन्दोंकी आज़माइश के लिये पैदा किया है। कोइ भी चीज़ या तो तुम्हारी किस्मत है, या किसी गैर की या वो किसीके लिये भी नहीं बल्के खुदा तआलाने उसको किसी आज़माइश व इबतेला के लिये पैदा किया है। अगर मशीय्यत (मरज़ी-किस्मत) में वो तुम्हारा मुकद्दर है तो तुम्हें बेहरहाल ज़ूरूर मीलेगी।
     तुम चाहो या न चाहो लेकिन ये बात गलत है के इस सिलसिलेमें तुम्हारी तरफसे गफलत, गुस्ताखी या सुए अदबका इज़हार हो और अगर वो चीज़ किसी दुसरे की किस्मत में है तो उसके हुसूल के लिये तरददुद करना नामुनासिब और बेसूदर है
     और अगर वो सलामती और खैर के साथ किसीकी भी किस्मतमें नहीं है बल्के सिर्फ फितना या आज़्माइशकी हैसियत रखती है तो कोइ साहेबे अकल ख्वामख्वा फितनों-आज़माइशोंको परेशानीयोंकी आमजगाह बनना कहां पसंद कर सकता है।
     इससे साबित हो गया के भलाइ और सलामती हिफज़े हाल ही में है। चुनान्चे अगर तुम कसरे शाहीमें दाखलेके बाद सीडीयां चढते हुए छत और बालाखाने तक पहोंच जाओ तो भी पेहले की तरह मोअदब, खामोश और सरनिगूं रहो। बल्के पेहलेसे ज़्यादा आदाबे शाहीको मल्हूज़ रखकर खिदमतमें मशगूल हो जाओ। क्यों के कल्बे शाहीमें खतरात ज़्यादा है।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*फुतूह अल ग़ैब 19*
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