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Saturday, 16 July 2016

सिरते मुस्तफाﷺ


*जंगे उहुद*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_एक अन्सारी औरत का सब्र_*
     एक अंसारी औरत जिस का शोहर, बाप, भाई सभी इस जंग में शहीद हो चुके थे तीनो की शहादत की खबर बारी बारी से लोगो ने उसे दी मगर वो हर बार यही पूछती रही "ये बताओ रसूलल्लाहﷺ कैसे है ?"
     जब लोगो ने उस को बताया कि अलहम्दु लिल्लाह वो ज़िन्दा है और सलामत है तो बे इख़्तियार उस की ज़बान से इस शेर का मज़मून निकल पड़ा कि...
*_तसल्ली है पनाहे बे कसा ज़िन्दा सलामत है_*
*_कोई परवा नही सारा जहां ज़िन्दा सलामत है_*

     अल्लाहु अकबर ! इस शेर दिल औरत का सब्र व इषार का क्या कहना ? शोहर, बाप, भाई तीनो के क़त्ल से दिल पर सदमात के तिन तिन पहाड़ गिर पड़े है मगर फिर भी ज़बाने हाल से उस का एहि नारा है...
*_में भी और बाप भी, शोहर भी, बरादर भी फ़िदा_*
*_ऐ शहे दीं ! तेरे होते हुए क्या चीज़ है हम_*
*✍🏽सिरते मुस्तफा 282*
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