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Tuesday 2 August 2016

40 फरमाने मुस्तफा

*निय्यत की अहमिय्यत*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हुज़ूर ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : आ'माल का दारो मदार निय्यत पर है।
     मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! इस हदिष से मालुम हुआ की आ'माल का षवाब निय्यत पर ही है. बगैर निय्यत किसी अ'मल पर षवाब का हक़ नहीं।
     आ'माल अ'मल की जमा है और इसका इत्लाक़ आ'जा, ज़बान और दिल तीनो के अफआल पर होता है, और यहा आ'माल से मुराद आ'माले सालिहा (नेक आ'माल) और जाइज़ अफआल है।
     निय्यत लुग्वि तौर पर दिल के पुखता इरादे को कहते है और शरअन इबादत के इरादे को निय्यत कहा जाता है।

*इबादत की दो किस्मे है*
*_1 मक़सूद_*
     जौसे नमाज़, रोज़ा इनसे मकसूद हुसुले षवाब है इन्हें अगर बिगैर निय्यत अदा किया जाए तो ये सहीह न होंगे इसलिये की इन से मक़सूद षवाब था और जब षवाब मफकुद हो गया तो इस की वजह से अस्ल शै ही अदा न होगी।
*_2 गैर मक़्सूदा_*
     वो जो दूसरी इबादतों के लिये ज़रिया हो जेसे नमाज़ के लिये चलना, वुज़ु, गुस्ल वगैरा। इन इबादतें गैर मक़्सूदा को अगर कोई निय्यते इबादत के साथ करेंगा तो उसे षवाब मिलेगा और अगर बिला निय्यत करेगा तो षवाब नहीं मिलेगा मगर इनका ज़रिया या वसीला बनना अब भी दुरुस्त होगा और इनसे नमाज़ सहीह हो जाएगी।
*✍🏽माखुज़ अज़ नूज़हतुल कारी सहीहुल बुखारी, 1/226*
*✍🏽40 फरमाने मुस्तफा, स. 10-11*
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खादिमे दिने नबी ﷺ *मुहम्मद मोईन*
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