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Friday 1 July 2016

तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा-27
*सूरए बक़रह_पारह 01*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*आयत ②⑥_तर्जुमह*
बेशक अल्लाह काबिले शर्म नही क़रार देता इसको, के ज़ुर्बुल-मषल बयान फरमाए मच्छर की, बल्कि इससे बड़ी, के पास जो मुसलमान है, वो तो जानते है के बेशक ये ठीक है उनके परवरदिगार की तरफ से। और जो काफ़िर रहे, तो वो पूछा करते है के "क्या मतलब रख्खा अल्लाह ने इस ज़र्बुल मषल से?" वो गुमराहिमे रहने देता है उससे बोहतेरो को, और हिदायत देता है बोहतेरोको। और नहीं गुमराही में रहने देता, मगर नाफ़र्मानो को।

*तफ़सीर*
और ऐ यहूदियो, मुनाफ़िक़ों, काफिरो ! कुरआनमें ज़ुर्बुल-मषल {उदाहरन} देखकर मुह क्या बिगाड़ते हो ? और ऐतराज़ क्यों करते हो ? उदाहरन बयान करना, मवइज़त व नसीहत और तालीम व हिकमत और दरसो इबरतमे असरकारक और एहले बयानका दस्तूर चला आ रहा है। और (बेशक अल्लाह) भी (काबिले शर्म नही क़रार देता) और क़ाबिले ज़िज़क नही जानता इस बात (को के ज़र्बुल-मषल फरमाए) बड़ी चिज़कि या छोटी चिज़कि। यहाँ तक के (मच्छर की। बल्कि उससे) भी बड़ी चीज़ की।
रौशनी-बारिस की, ख्वाह मख्खी-मकड़ी की। (के पस) इसके सुननेवालों में (जो मुसलमान है) अल्लाह व रसूल को मान चुके है वो तो बगैर किसी शक व शुबा के (जानते है के बेशक ये) उदाहरण बिलकुल ठीक है और ये उनके परवरदिगार ही की तरफसे है।
और जो काफ़िर रहे और अल्लाह व रसूल के इनकार पर ये जमे रहे, उनसे इसका कुछ जवाब तो हो नही सकता। तो वो मुह बिगाड़ कर बयान करने से। उदाहरण क्या रख्खा है? ये तो बेकार सी बात है।
सच तो ये है के अल्लाह तआला (गुमराही में रहने देता है) इस क़ुरआन के इनकार कर देनेकी वजह से बहोतसे लोगो को के अपनी गुमराही में पड़े है।
और हिदायत भी देते है बहोतसे लोगो को जो हिदायत की तड़प रखते है।
और दस्तूरे इलाही ये है के नहीं गुमराहिमे रहने देता, फार्मा बरदार को, और पस गुमराह कर देता है नाफ़र्मानोको, जो न कहा सुने और न सूना क़बूल करे। और हर फरमान का इनकार ही करते रहे और उसके खिलाफ ही चले।
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