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Sunday 3 July 2016

तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा-28
*सूरए बक़रह_पारह 01*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*आयत ②⑦_तर्जुमह*
जो तोड़ते रहे अल्लाह के अहदको उसके मज़बूत होनेके बाद, और काटते रहे उसको, हुक्म दिया अल्लाह ने जिसके लिये के मिलाया जाए, और फसाद डाले ज़मिनमे, वही खसारावाले है।

*तफसिर*
और जो तोड़ते रहे दुसरो ही के नही बल्कि खुद (अल्लाह के अहदको) अल्लाह से वादा करे और फिर तोड़ भी दे। (उसके मज़बूत होने) और पक्का अहद कर लेने के बाद ये जानते हुए के अल्लाह तआला ने बड़ी ताकीदे शदीद फ़रमाई है। और ये वादा तोड़ने वाले इसी और सब्र न करे। बल्कि काटते रहे उस चीज़ को (हुक्म दिया अल्लाह ने जिसके लिये मिलाया जाए) न रिश्तों की परवाह, न मुसलमानो की दोस्ती का लिहाज़, न अम्बिया अलैहिमुस्सलाम और आसमानी किताबो का। जमीअत बंदी, फिरका बंदी ही करते रहे। और इन सब पर उनका काम-धंधा ये है के फसाद डाले ज़मिनमे हंगामा और फ़ितने से, सन्-सनी पैदा करके सुख-शान्ति में खलल डाले, के अहले वतन रसूले पाक तक न जाए और क़ुरआन न सुने और तबाह बने रहे। वो सबका नुक्सान चाहते है। हालांके वो किसीका क्या बिगाड़ सकते है ? वो अपनी इन हरकतोके सबबसे बस खुद नुक्सान वाले है। न दुन्यमे चेन पाए, न आखेरतमे नजात मिले, तो सारा नुकसान उन्हीका है।
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