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Friday 24 March 2017

*जमाअत छोड़ने की सजा* #05/08
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने से जहा मुसलमानो की आपस में मुहब्बत व मुवानसत में इज़ाफ़ा होता है वही नमाज़ का षवाब भी कइ गुना बढ़ जाता है। अहादिसे मुबारका में कई मकामात पर जमाअत से नमाज़ पढ़ने वाले के लीये कसीर षवाब और कई इनामात की बिशारते वारिद हुई है।

*_4 फरमाने मुस्तफा ﷺ_*
     जिसने कामिल वुज़ु किया, फिर फ़र्ज़ नमाज़ के लीये चला और इमाम की इक्तिदा में फ़र्ज़ नामाज़ पढ़ी, उसके गुनाह बख्श दिये जाएंगे।
     अल्लाह बा जमाअत नमाज़ पढ़ने वालो को महबूब रखता है।
     बा जमाअत नमाज़ तन्हा नमाज़ से 27 दरजे अफ़्ज़ल है।
     जब बन्दा बा जमाअत नमाज़ पढ़े, फिर अल्लाह से अपनी हाजत का सुवाल करे तो अल्लाह इस बात से हया फरमाता है की बन्दा हाजत पूरी होने से पहले वापस लौट जाए।

     मुस्तफा ﷺ ने फ़रमाया : जो अल्लाह के लीये 40 दिन बा जमाअत नमाज़ पढ़े और तकबिरे उला पाए, उसके लिये दो आज़ादियाँ लिख दी जाएगी,
नार यानी दोज़ख से
निफाक से।

     इमाम शरफुद्दीन हुसैन बिन मुहम्मद तीबी फरमाते है : निफाक से बराअत का मतलब ये है की वो दुन्या में मुनाफिक जैसे आमाल से महफूज़ रहेगा और उसे मुखलिसिन जैसे आमाल करने की तौफ़ीक़ मिलेगी। नीज़ आख़िरत में नारे जहन्नम से अम्न में रहेगा।

     नमाज़े बा जमाअत की इस कदर बरकतों और फाज़िलातो के बा वुज़ूद सुस्ती करना और जमाअत से नमाज़ न पढ़ना किस कदर ताज्जूब ख़ेज़ है ?
     मगर अफ़सोस ! साद करोड़ अफ़सोस ! जमाअत की परवा नहीं की जाती, बल्कि नमाज़ भी अगर कज़ा हो जाए तो कोई रन्ज नहीं।

     हमें अपने अन्दर नमाज़े बा जमाअत की अहमियत और इस की महब्बत पैदा करनी चाहिए और अपने बच्चों को भी शुरुअ से ही जमाअत से नमाज़ पढ़ने की आदत डलवाए।
*✍🏽तर्के जमाअत की वईदे, स. 9*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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