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Wednesday 1 March 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #159
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②①⑤_*
     तुमसे पूछते हैं (15) क्या ख़र्च करें. तुम फ़रमाओ जो कुछ माल नेकी में ख़र्च करो तो वह माँ बाप  और यतीमों  और मोहताज़ों और राहगीर के लिये है  और जो भलाई करो (16) बेशक अल्लाह उसे जानता है (17).

*तफ़सीर*
     (15) यह आयत अम्र बिन जमूह के जवाब में नाज़िल हुई जो बूढ़े आदमी थे और बड़े मालदार थे उन्होंने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से सवाल किया था कि क्या ख़र्च करें और किस पर ख़र्च करें. इस आयत में उन्हें बता दिया गया कि जिस क़िस्म का और जिस क़दर माल कम या ज़्यादा ख़र्च करो, उसमें सवाब है. और ख़र्च की मदें ये हैं. आयत में नफ़्ल सदक़े का बयान है. माँ बाप को ज़कात और वाजिब सदक़ा (जैसे कि फ़ितरा) देना जायज़ नहीं. (जुमल वग़ैरह).
     (16) यह हर नेकी को आम है. माल का ख़र्च करना हो या और कुछ. और बाक़ी ख़र्च की मदें भी इसमें आ गई.
     (17) उसकी जज़ा यानी बदला या इनाम अता फ़रमाएगा.
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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