*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #179
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_सूरतुल बक़रह, आयत ②③⑤_*
और तुम पर गुनाह नहीं इस बात में जो पर्दा रखकर तुम औरतों के निकाह का पयाम दो या अपने दिल में छुपा रखो. (12) अल्लाह जानता है कि अब तुम उनकी याद करोगे (13) हाँ उनसे छुपवां वादा न कर रखो मगर यह कि उतनी बात कहो जो शरीअत में चलती है और निकाह की गांठ पक्की न करो जब तक लिखा हुक्म अपने समय को न पहुंच ले (14) और जान लो कि अल्लाह तुम्हारे दिल की जानता है तो उससे डरो और जान लो कि अल्लाह बख़्शने वाला, हिल्म (सहिष्णुता) वाला है.
*तफ़सीर*
(12) यानी इद्दत में निकाह और निकाह का खुला हुआ प्रस्ताव तो मना है लेकिन पर्दे के साथ निकाह की इच्छा प्रकट करना गुनाह नहीं. जैसे यह कहे कि तुम बहुत नेक औरत हो या अपना इरादा दिल में ही रखे और ज़बान से किसी तरह न कहे.
(13) और तुम्हारे दिलों में इच्छा होगी इसी लिये तुम्हारे लिये तारीज़ जायज़ कर दी गई.
(14) यानी इद्दत गुज़र चुके.
*___________________________________*
मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
*___________________________________*
*DEEN-E-NABI ﷺ*
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और तुम पर गुनाह नहीं इस बात में जो पर्दा रखकर तुम औरतों के निकाह का पयाम दो या अपने दिल में छुपा रखो. (12) अल्लाह जानता है कि अब तुम उनकी याद करोगे (13) हाँ उनसे छुपवां वादा न कर रखो मगर यह कि उतनी बात कहो जो शरीअत में चलती है और निकाह की गांठ पक्की न करो जब तक लिखा हुक्म अपने समय को न पहुंच ले (14) और जान लो कि अल्लाह तुम्हारे दिल की जानता है तो उससे डरो और जान लो कि अल्लाह बख़्शने वाला, हिल्म (सहिष्णुता) वाला है.
*तफ़सीर*
(12) यानी इद्दत में निकाह और निकाह का खुला हुआ प्रस्ताव तो मना है लेकिन पर्दे के साथ निकाह की इच्छा प्रकट करना गुनाह नहीं. जैसे यह कहे कि तुम बहुत नेक औरत हो या अपना इरादा दिल में ही रखे और ज़बान से किसी तरह न कहे.
(13) और तुम्हारे दिलों में इच्छा होगी इसी लिये तुम्हारे लिये तारीज़ जायज़ कर दी गई.
(14) यानी इद्दत गुज़र चुके.
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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