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Sunday 12 March 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #167
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②②②_*
     और तुमसे पूछते हैं हैज़ का हुक्म तुम फ़रमाओ वह नापाकी है तो औरतों से अलग रहो हैज़ के दिनों और उनके क़रीब न जाओ जब तक पाक न हो लें फिर जब पाक हो जाएं तो जहां से तुम्हें अल्लाह ने हुक्म दिया बेशक अल्लाह पसन्द करता है बहुत तौबह करने वालों को और पसन्द रखता है सुथरों को.

*तफ़सीर*
     अरब के लोग यहूदियों और मजूसीयों यानी आग के पुजारियों की तरह माहवारी वाली औरतों से सख़्त नफ़रत करते थे. अरब खाना पीना, एक मकान में रहना गवारा न था, बल्कि सख़्ती यहाँ तक पहुँच गई थी कि उनकी तरफ़ देखना और उनसे बात चीत करना भी हराम समझते थे, और ईसाई इसके विपरीत माहवारी के दिनों में औरतों के साथ बड़ी महब्बत से मशग़ूल होते थे, और सहवास में बहुत आगे बढ़ जाते थे.
     मुसलमानों ने हुज़ूर से माहवारी का हुक्म पूछा. इस पर यह आयत उतरी और बहुत कम तथा बहुत ज़्यादा की राह छोड़ कर बीच की राह अपनाने की तालीम दी गई और बता दिया गया कि माहवारी के दिनों में औरतों से हमबिस्तरी करना मना है.
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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