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Sunday 5 March 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #163
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②①⑨_*
     तुमसे शराब  और जुए का हुक्म पूछते हैं, तुम फ़रमादो कि उन दोनों में बड़ा गुनाह है  और लोगों के कुछ दुनियावी नफ़े भी  और उनका गुनाह उनके नफ़े से बड़ा है(9) और  तुमसे पूछते हैं क्या ख़र्च करें (10) तुम फ़रमाओ जो फ़ाज़िल (अतिरक्त) बचे (11) इसी तरह अल्लाह तुमसे आयतें बयान फ़रमाता है कि कहीं सोचकर करो तुम.

*तफ़सीर*
     (9) हज़रत अली मुरतज़ा रदियल्लाहो अन्हु ने फ़रमाया, अगर शराब की एक बूंद कुंवें में गिर जाए फिर उस जगह एक मीनार बनाया जाए तो मैं उसपर अज़ान न कहूँ. और अगर नदी में शराब की बूंद पडे़, फिर नदी ख़ुश्क हो और वहाँ घास पैदा हो तो उसमें मैं अपने जानवरों को न चराऊं. सुब्हानअल्लाह ! गुनाह से किस क़द्र नफ़रत है. अल्लाह तआला हमें इन बुज़ुर्गों के रास्ते पर चलने की तौफ़ीक अता करे.
     शराब सन तीन हिजरी में ग़जवए अहज़ाब से कुछ दिन बाद हराम की गई. इससे पहले यह बताया गया था कि जुए और शराब का गुनाह उनके नफे़ से ज़्यादा है. नफ़ा तो यही है कि शराब से कुछ सुरूर पैदा होता है या इसकी क्रय विक्रय से तिजारती फ़ायदा होता है. और जुए में कभी मु्फ़्त का माल हाथ आता है और गुनाहों और बुराइयों की क्या गिनती, अक़्ल का पतन, ग़ैरत, शर्म, हया और ख़ुददारी का पतन, इबादतों से मेहरूमी, लोगो से दुश्मनी, सबकी नज़र में ख़्वार होना, दौलत और माल की बर्बादी.
     एक रिवायत में है कि जिब्रील अमीन ने हुज़ूर पुरनूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में अर्ज़ किया कि अल्लाह तआला को जअफ़रे तैयार की चार  विशेषताएं पसन्द हैं. हुज़ूर ने हज़रत जअफ़र तैयार से पूछा, उन्होंने अर्ज़ किया कि एक तो यह है कि मैंने शराब कभी नहीं पी यानी हराम हो जाने के हुक्म से पहले भी और इसकी वजह यह थी कि मैं जानता था कि इससे अक़्ल भ्रष्ट होती है और मैं चाहता था कि अक़्ल और भी तेज़ हो. दूसरी आदत यह है कि जाहिलियत के ज़माने में भी मैंने मूर्ति पूजा नहीं की क्योंकि मैं जानता था कि यह पत्थर है, न नफ़ा दे, न नुक़सान पहुंचा सके, तीसरी ख़सलत यह है कि मैं कभी ज़िना में मुब्तिला नहीं हुआ कि उसको मैं बेग़ैरती और निर्लज्जता समझता था, चौथी ख़सलत यह कि मैंने कभी झूट नहीं बोला क्योंकि मैं इसको कमीना-पन ख़याल करता था. शतरंज, ताश वग़ैरह हार जीत के खेल और जिन पर बाज़ी लगाई जाए, सब जुए में दाख़िल हैं, और हराम हैं. (रूहुल बयान)
     (10) सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने मुसलमानों को सदक़ा देने की रग़बत दिलाई तो आपसे दर्याफ़त किया गया कि मिक़दार इरशाद फ़रमाएं कि कितना माल ख़ुदा की राह में दिया जाय. इस पर यह आयत उतरी (ख़ाज़िन)
     (11) यानी जितना तुम्हारी ज़रूरत से ज़्यादा हो. इस्लाम की शुरूआत में ज़रूरत से ज़्यादा माल का ख़र्च करना फ़र्ज़ था. सहाबएं किराम अपने माल में से अपनी ज़रूरत भर का लेकर बाक़ी सब ख़ुदा की राह में दे डालते थे. यह हुक्म ज़कात की आयत के बाद स्थगित हो गया.
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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