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Wednesday 28 September 2016

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #48
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑤ⓞ_*
और जब हमने तुम्हारे लिये दरिया फ़ाड़ दिया तो तुम्हें बचा लिया. और फ़िरऔन वालों को तुम्हारी आंखों के सामने डुबो दिया

*तफ़सीर*
     यह दूसरी नेअमत का बयान है जो बनी इस्त्राईल पर फ़रमाई कि उन्हें फ़िरऔन वालों के ज़ुल्म और सितम से नजात दी और फ़िरऔन को उसकी क़ौम समेत उनके सामने डुबो दिया. यहां आले फ़िरऔन (फ़िरऔन वालों) से फ़िरऔन और उसकी क़ौम दोनों मुराद हैं. जैसे कि “कर्रमना बनी आदमा” यानी और बेशक हमने औलादे आदम को इज़्ज़त दी (सूरए इसरा, आयत 70) में हज़रत आदम और उनकी औलाद दोनों शामिल हैं.
*✍🏽जुमल*
     संक्षिप्त वाक़िआ यह है कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम अल्लाह के हुक्म से रात में बनी इस्त्राईल को मिस्र से लेकर रवाना हुए, सुब्ह को फ़िरऔन उनकी खोज में भारी लश्कर लेकर चला और उन्हें दरिया के किनारे जा लिया. बनी इस्त्राईल ने फ़िरऔन का लश्कर देख़कर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से फ़रियाद की. आपने अल्लाह के हुक्म से दरिया में अपनी लाठी मारी, उसकी बरकत से दरिया में बारह ख़ुश्क रास्ते पैदा हो गए. पानी दीवारों की तरह खड़ा हो गया. उन दीवारों में जाली की तरह रौशनदान बन गए. बनी इस्राईल की हर जमाअत इन रास्तों में एक दूसरे को देखती और आपस में बात करती गुज़र गई. फ़िरऔन दरियाई रास्ते देखकर उनमें चल पड़ा. जब उसका सारा लश्कर दरिया के अन्दर आ गया तो दरिया जैसा था वैसा हो गया और तमाम फ़िरऔनी उसमें डूब गए. दरिया की चौड़ाई चार फरसंग थी.
     ये घटना बेहरे कुलज़म की है जो बेहरे फ़ारस के किनारे पर है, या बेहरे मा-वराए मिस्र की, जिसको असाफ़ कहते है. बनी इस्राईल दरिया के उस पार फ़िरऔनी लश्कर के डूबने का दृश्य देख रहे थे.
     यह वाक़िआ दसवीं मुहर्रम को हुआ. हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उस दिन शुक्र का रोज़ा रखा. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के ज़माने तक भी यहूदी इस दिन का रोज़ा रखते थे. हुज़ूर ने भी इस दिन का रोज़ा रखा और फ़रमाया कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की विजय की ख़ुशी मनाने और उसकी शुक्र गुज़ारी करने के हम यहूदियों से ज़्यादा हक़दार हैं.
     इस से मालूम हुआ कि दसवीं मुहर्रम यानी आशुरा का रोज़ा सुन्नत है. यह भी मालूम हुआ कि नबियों पर जो इनाम अल्लाह का हुआ उसकी यादगार क़ायम करना और शुक्र अदा करना अच्छी बात है. यह भी मालूम हुआ कि ऐसे कामों में दिन का निशिचत किया जाना रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की सुन्नत है. यह भी मालूम हुआ कि नबियों की यादगार अगर काफ़िर लोग भी क़ायम करते हों जब भी उसको छोड़ा न जाएगा.
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