#42
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_सूरतुल बक़रह, आयत ④②_*
और हक़ (सत्य) से बातिल (झूठ) को न मिलाओ और जान बूझकर हक़ न छुपाओ
*_सूरतुल बक़रह, आयत ④③_*
और नमाज़ क़ायम रखो और ज़कात दो और रूकू करने वालों के साथ रूकू करो
*तफ़सीर*
इस आयत में नमाज़ और ज़कात के फ़र्ज़ होने का बयान है और इस तरफ़ भी इशारा है कि नमाज़ों को उनके हुक़ूक़ (संस्कारों) के हिसाब से अदा करो. जमाअत (सामूहिक नमाज़) की तर्ग़ीब भी है.
हदीस शरीफ़ में है जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ना अकेले पढ़ने से सत्ताईस दर्जे ज़्यादा फ़ज़ीलत (पुण्य) रखता है.
___________________________________
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*DEEN-E-NABI ﷺ*
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*_सूरतुल बक़रह, आयत ④③_*
और नमाज़ क़ायम रखो और ज़कात दो और रूकू करने वालों के साथ रूकू करो
*तफ़सीर*
इस आयत में नमाज़ और ज़कात के फ़र्ज़ होने का बयान है और इस तरफ़ भी इशारा है कि नमाज़ों को उनके हुक़ूक़ (संस्कारों) के हिसाब से अदा करो. जमाअत (सामूहिक नमाज़) की तर्ग़ीब भी है.
हदीस शरीफ़ में है जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ना अकेले पढ़ने से सत्ताईस दर्जे ज़्यादा फ़ज़ीलत (पुण्य) रखता है.
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