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Wednesday 28 September 2016

मुहर्रम कैसे मनाये

#01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_हुसैनी दिन यानी 10 मुहर्रम_*
     मुहर्रम में कुछ लोग इमाम हुसैन के किरदार को भूल गये और इस दिन को खेल तमाशो, गैर शरई रस्मो नाचगाना, मेले और गुमने फिरने का दिन बना दिया। और ऐसा लगने लगा की जेसे इस्लाम मजहब भी दूसरे मजहबो की तरह खेल तमाशो, गुमने फिरने और रंग रलिया वाला मजहब है।
     मुसलमान कहलाने वालो में सिर्फ एक फिरका जिसको राफजी यानी शिया कहते है उनके वहा नमाज़, रोज़ा वगैरा शरीअत के हुक्मो का और दीनदारी के मुआमले में कोई अहमियत देने में नहीं आता। बस मुहर्रम आते ही रोना, पीटना, चिल्लाना यही उनका मज़हब है। जाने की अल्लाह ने उसके रसूलﷺ को यही सब करने और सिखाने भेज था और यही सब बेतुकी बातो का नाम इस्लाम है।
     हदीसे पाक में है : हुज़ूर ﷺ फरमाते है जो कोई गम मे गाल पिटे, गला फाडे, जाहिलियत के ज़माने जैसा चिल्लाये वो हम में से नहीं है।
*✍🏽मिश्कात शरीफ, स. 150*
*_नियाज़ और फातेहा_*
     हज़रत इमाम हुसैन और जो लोग उनके साथ शहीद हुए है उनके इसाले सवाब के लीये सदका, खैरात करे, गरीबो मिस्नकिनो, दोस्तों, पड़ोसीओ, रिस्तेदारो को शरबत या खिचड़ा या मलीदा वगैरा कोई भी जाइज़ खाने पिने वाली चीज़े खिलाना और पिलाना जाइज़ है और उसके साथ अगर क़ुरआन की तिलावत करे तो और बेहतर है। इन सब बातो को नियाज़ हातेहा कहते है। ये सब बिना सूबा जाइज़ और मुस्त हसन है और बुजुर्गो की अकीदत पेश करने का अच्छा तरिका है।
     लेकिन इन सब बातो में कुछ चीज़ों का ध्यान रखना ज़रूरी है।

✔उन बातो का खुलासा अगली पोस्ट में होगा انشاء الله
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