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Sunday 11 September 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*क़ब्र को रौनक बख्शने और इसे आराम देह बनाने वाले आमाल* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_मुझे नमाज़ पढ़ने दो_*
     हदिष में है की जब मैय्यत क़ब्र मे दाखिल की जाती है तो उसे सुरज डूबता (यानी गुरुब होता) नज़र हुवा मालुम होता है तो वो आँखे मलता हुवा बैठता है और कहता है : मुझे छोडो में नमाज़ पढ़ लू।
*✍🏽सुनन इब्ने माजह, 4/503*
      हज़रते मुल्ला अली कारी अलैरहमा लिखते है : गोया वो उस वक़्त अपने आप को दुन्या ही में तसव्वुर करता है के सुवाल व जवाब रहने दो मुझे फ़र्ज़ अदा करने दो, वक़्त खत्म हुवा जा रहा है, मेरी नमाज़ जाती रहेगी।
     ये बात वही कहेगा जो दुन्या में नमाज़ का पाबन्द था और उस को हर वक़्त नमाज़ का ख्याल लगा रहता था।

*_दो अँधेरे दूर होंगे_*
     मन्कुल है के अल्लाह ने हज़रते मूसा कलीमुल्लाह से फ़रमाया के में ने उम्मते मुहम्मदिया को दो नूर अता किये है ताके वो दो अंधेरो के नुकसान से महफूज़ रहे। मूसा कलीमुल्लाह ने अर्ज़ की : या अल्लाह ! वो दो नूर कौन से है ? इरशाद हुवा : *नुरे रमज़ान* और *नुरे कुरआन*। अर्ज़ की: दो अँधेरे कौन से है ? फ़रमाया एक क़ब्र का और दूसरा क़यामत का।
*✍🏽दुर्र्त्तुन नासिहीन, 9*
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त, 63*
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