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Thursday 29 September 2016

मुहर्रम कैसे मनाये

#03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_ताजिया के बारे में गलत फहमी_*
     आज कल जो ताजिया बनाते है उसमे पहली बात ये की वो हज़रत इमाम हुसैन के रोज़ा मुबारक की तरह नहीं होता। अजब कज़ब तरीके के ताजिये बनाये जाते है। और फिर उसे गुमाते हे गस्त लगाते है। एक दुसरो से मुकाबला करते है और ऐसे मुकाबले में कभी कभी जगडे फसाद भी हो जाते है। और ये सब इमाम हुसैन की मुहब्बत नाम पर होता है।
     अफ़सोस! ये मुसलमानो को क्या हो गया है? वो कहा से चला था और कहा पहोच गया? कोई समजाये तो मानने के लिए राज़ी नहीं, बल्के समजाने वाले को ही भला बुरा कहते है।
     मतलब के अभी के वक़्त में जो ताजिया और उसके साथ होने वाली सब बिदअते और बुराई और वाहियात बाते सब नाजाइज़ और गुनाह है।
     जेसे के मातम करना, ताजिया पे चढ़ावा चढ़ाना, उसके सामने खाना रख के वहा फातिहा चढ़ाना, उनसे मन्नते मुरादे मांगना, उनके निचे से बच्चों को निकालना, ताजिया देखने जाना, उसको जुक जुक कर सलाम करना, सवारिया निकलना ये सब जाहिलाना और नाजाइज़ बाते है। इसे इस्लाम के साथ कोई वास्ता नहीं। और जो लोग इस्लाम को अच्छे से जानते है उनका दिल खुद ही कहेगा के इस्लाम जैसा सीधा और शराफत वाला मज़हब ये तमाशा और वहेम परस्ती भरी बातोंको कैसे कबुल कर शकता है।
     कुछ लोग कहते है ताजियादारी और ढोल तमासे और मातम करते हुए गुमने से इस्लाम और मुसलमान की शान जाहिर होती है। लेकिन ये फ़ुज़ूल बात है।
     पाँच वक़्त की अज़ान और महोल्ला, बस्ती और सभी मुसलमानो का मस्जिद में नमाज़े ब-जमाअत से ज्यादा मुसलमानो की शान बढ़ा ने वाली कोई चीज नहीं।
     ताजियादारी और उसके साथ ढोल तमासे और नाचना, कूदना और मातम मनाना और बुज़ुर्गोके नाम पर गैर शरई उर्स, मेला और आजकी कव्वालियों की महफिले देख के गैर मुस्लिम ऐसा समजते है के ये भी हमारे मज़हब के जैसा तमाशेवाला मज़हब है।
     और नमाज़, रोज़ा, ईमानदारी और सच्चाई, शरीअतके हुक्मो की पाबन्दी और दीनदारी देख के गैर मुस्लिम ऐसा कहते है की "अगर मज़हब कोई है तो वो इस्लाम ही है"
     कोई मज़बूरी की वजह से वो मुसलमान नहीं बनते पर उनका दिल मुसलमान बनने को तड़पता है।  और कितने तो मुसलमान हो भी जाते है, और होते रहते है।
     ज़रा सोचे 1400 साल में मुसलमान की तादाद कितनी हो चुकी है। ये सब नमाज़, रोज़े, इस्लाम की सीधी सच्ची बाते देख के बने है, ना की ताजियादारी, मेले तमासे देख के बनते है।
     *और ताजियादारी इस्लाम की शान नहीं बल्कि बदनामी है। आज वहाबी के उलमा यही सब दिखाके सुन्नियो को वहाबी बनाते है। यानी वो हमारे ये गैर मज़हबी रश्मो रिवाज़ दिखा के वहाबी बनाते है।*
     मुसलमान का अक़ीदा और ईमान इतना मजबूत होना चाहिए की दुनियाइ नफ़ा हो या नुकशान पर हम तो वही करेंगे जिससे अल्लाह और रसूल राज़ी होते है।
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